Chaurchan Parv: भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाने वाला चौरचन पर्व मिथिला की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का अहम हिस्सा है। यह पर्व स्थानीय लोगों के बीच छठ और दुर्गा पूजा के बाद सबसे लोकप्रिय माना जाता है। मैथिली समाज में यह व्रत चौरचन या चौठचन्द्र के नाम से जाना जाता है।
पारंपरिक मान्यता के अनुसार, इस दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखकर शाम को चन्द्र देव की पूजा करती हैं। घरों के आंगन और छत पर रंग-बिरंगे अरिपन (चावल के आटे से बनी सजावट) बनाए जाते हैं। पूजा के समय पकवान, फल और मिठाई चन्द्रमा के समक्ष समृद्धि तथा संतान सुख की कामना की जाती है।
इतिहासकारों का मानना है कि भले ही आज यह पर्व केवल मिथिला तक सिमित रह गया है लेकिन मध्यकालीन निबंधों और पुराणों के आधार पर कहा जा सकता है कि एक समय यह अन्य क्षेत्रों में भी प्रचारित रहा होगा।
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पूजा की विधि:
• व्रती महिलाएं दिन भर उपवास रखती हैं।
• शाम को अरिपन सजाने के बाद पश्चिम दिशा की ओर पकवान रखकर चंद्र देव की पूजा की जाती है।
• पूजा के बाद व्रत कथा सुनी जाती है और अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
• अंत में परिवारजन प्रसाद ग्रहण करते हैं।
सांस्कृतिक रूप से चौरचन व्रत मिथिला की लोक गीत परंपरा और पारिवारिक एकता का प्रतीक है। महिलाएं नए वस्त्र धारण कर लोक गीत गाती है और परिवार मिलकर इस पर्व को उल्लासपूर्वक मनाते है।













