Chaurchan Puja 2025: मिथिला क्षेत्र में भाद्रपद मास की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पवित्र चौरचन पर्व इस वर्ष भी बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए, हर घर की महिलाओं और पुरुषों ने शाम को चंद्रदेव की पूजा कर अपना व्रत पूरा किया।
लोक आस्था और पौराणिक विश्वास से जुड़ा यह पर्व मिथिला की सांस्कृतिक पहचान माना जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग पूरे दिन उपवास रखते हैं और चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देते हैं। पूजा में चावल-दूध की खीर, दही, चना, मौसमी फल, सुपारी, नारियल, धूपबत्ती आदि का विशेष महत्व होता है। परंपरा के अनुसार, लोग घर के आंगन या छत पर केले के पत्ते बिछाकर व्रत का प्रसाद सजाते हैं। परिवार की महिलाएं मंगल गीत गाती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में चौचन की शोभा देखने लायक होती है। इसमें बच्चे और युवक-युवतियां भी उत्साह से भाग लेते हैं.
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स्थानीय पंडितों के अनुसार, चौरचन पर्व पर चंद्रमा की पूजा करने से पारिवारिक सुख, शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। मिथिला में यह त्योहार खासतौर पर भाई-बहन और पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती से जुड़ा हुआ माना जाता है. गांवों में सामूहिक पूजा की परंपरा आज भी जीवित है, जबकि शहरी इलाकों में लोग अपने घरों की छतों पर पूजा-अर्चना कर मिथिला की इस विरासत को संरक्षित कर रहे हैं. यह पर्व मिथिला की समृद्ध परंपरा और लोक आस्था का अनूठा संगम है, जो समाज में एकता, प्रेम और संस्कृति के संरक्षण का संदेश देता है।












