Bihar News: बिहार शिक्षा परियोजना के अंतर्गत नामित नोडल शिक्षकों के लिए अलीनगर हाई स्कूल में आयोजित तीन दिवसीय गैर आवासीय प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन शनिवार को हुआ। अंतिम दिन प्रशिक्षकों ने दिव्यांग बच्चों की शिक्षा और समाज में उनकी भागीदारी पर महत्वपूर्ण विचार रखे।
प्रशिक्षक अजीत कुमार कर्ण ने कहा कि दिव्यांग बच्चों में भी सामान्य बच्चों की तरह सीखने और कुछ कर गुज़रने की जुनून होती है, लेकिन शारीरिक अथवा मानसिक विकलांगता और समाज में मजाक का पात्र बनने के कारण वे भीतर से टूट जाते हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की ज़िम्मेदारी है कि वे घर- घर जाकर दिव्यांग बच्चों की पहचान करें और हर हाल में उनका नामांकन सुनिश्चित करें। शिक्षा के बल पर ही ये बच्चे आत्मशक्ति से आगे बढ़कर समाज में विशेष पहचान बना सकते हैं।
वहीं मोनी कुमारी ने कहा कि एक पैर अथवा हाथ से विकलांग बच्चों में भी सामान्य बच्चों की तुलना में पढ़ने अथवा खेलने के प्रति काफी अधिक जुनून होती है। जिसे बस आलोचनाओं का शिकार दबा देती है। वहीं गूंगे बच्चे अपवाद को छोड़कर बहरे भी होते हैं। ईश्वर यदि गूंगे बच्चे को बहरे नहीं बनाते तो शायद बहुत सारे गूंगे बच्चे समाज की ताना को सुनकर हो सकता है कि आत्म हत्या करने पर भी उतारू होते।
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चूंकि गलत उपहास सुनने के बाद वह जवाबी प्रतिक्रिया देने की प्रयास करते जो उससे संभव नहीं हो पाता। लेकिन ऐसे बच्चे केवल इशारा की बात सुनते और कहते भी हैं। ऐसे में सरकार ने उसे भी बेहतरी के साथ जीने की शक्ति प्रदान करने के लिए संकलित हो चुका है। और यह एक मात्र शिक्षा की शक्ति के बल पर ही संभव है।
संसाधन शिक्षक विवेक चौधरी ने कहा कि सरकार समावेशी शिक्षा प्रणाली के तहत दिव्यांग बच्चों के लिए रैंप, उपयुक्त कुर्सी- बेंच, ट्राईसाइकिल, ब्रेल लिपि और कंप्यूटर जैसी सुविधाएं उपलब्ध करा रही है। उन्होंने शिक्षकों से आवाहन किया कि इन बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने और उन्हें बेहतर जीवन की ओर अग्रसर करने में सक्रिय भूमिका निभाएं।