Jharkhand News: आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो को पश्चिम बंगाल के झालदा में पुलिस ने रोका। सुदेश महतो को पार्टी प्रतिनिधिमंडल के साथ कोटशिला जाने से रोक दिया गया. जहां वह हाल ही में हुई हिंसा की घटनाओं के पीड़ितों से मिलने जा रहे थे.
प्रतिनिधिमंडल में सुदेश महतो के साथ पार्टी के पूर्व विधायक लंबोदर महतो, ईचागढ़ के पूर्व प्रत्याशी हरेलाल महतो, पार्टी महासचिव और हजारीबाग लोकसभा के पूर्व प्रत्याशी संजय मेहता शामिल थे. ज्ञात हो कि कुड़मी समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर किये गये आंदोलन के दौरान कोटशिला क्षेत्र के कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गये थे. इन घायलों से मिलने और उनका हालचाल जानने के उद्देश्य से महतो और आजसू पार्टी का प्रतिनिधिमंडल पश्चिम बंगाल के लिए रवाना हुआ था. लेकिन रास्ते में पुलिस प्रशासन ने उन्हें रोक लिया और आगे नहीं बढ़ने दिया.
पार्टी महासचिव संजय मेहता ने पुरुलिया के एडिशनल एसपी से बात की. उन्होंने एसपी से साफ कहा कि पुलिस के आदेश के बावजूद हम लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन बर्दाश्त नहीं करेंगे. हमें जाने की अनुमति दी जानी चाहिए.’ जिसके बाद पुलिस ने भारी सुरक्षा के बीच सुदेश महतो को कोटशिला तक जाने की इजाजत दी, लेकिन सिर्फ कार्यकर्ताओं से मिलने के लिए. पुलिस ने सुदेश महतो को पीड़ितों के गांव जाने से रोक दिया.
पार्टी प्रवक्ता संजय मेहता ने कहा कि लोगों को पीड़ितों से मिलने से रोकना लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है जब लोग अपनी समस्याएं और दर्द साझा करना चाहते हैं। तब प्रशासन उन्हें दबाने और रोकने की कोशिश करता है. उन्होंने कहा कि कोटशिला घटना के पीड़ित परिवारों के साथ पार्टी की पूरी सहानुभूति है. प्रशासन हमें कितना भी रोके, हम जनहित और समाजहित की आवाज उठाते रहेंगे।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों का दर्द सुनना और बांटना किसी भी राजनीतिक दल की जिम्मेदारी है। बंगाल पुलिस दमन पर उतर आई है. संजय मेहता ने बताया कि सुदेश महतो जी के कार्यक्रम की जानकारी पहले ही बंगाल पुलिस को दे दी गयी थी. बंगाल पुलिस ने भी इजाजत दे दी थी. सुदेश महतो के काफिले को बंगाल पुलिस ने भी सुरक्षा मुहैया करायी. लेकिन झालदा पुलिस ने अत्यधिक बल प्रयोग कर इसे रोक दिया.
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आजसू पार्टी ने बंगाल पुलिस से मांग की है कि हिंसा में घायल हुए लोगों को उचित इलाज और मुआवजा दिया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए. पुलिस किसी भी आंदोलनकारी का दमन न करे। पुलिस ने गांव में घुसकर लोगों पर अत्याचार किया. इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.