Kharsawan Goli Kand: देश में ऐसी जगह भी है जहां साल की शुरूआत आंसुओं के धाराओं के बीच होती है. जी हां…हम बात कर रहे हैं एक ऐसे वाक्या कि जिसमें जश्न नहीं, दुख की धारा बहती है…दरअसल एक जनवरी 1948 को झारखंड के खरसावां में कई लोगों को गोलियों से भून दिया गया था… इतिहास के पन्नों में साल 1948 की पहली जनवरी काले अक्षरों में दर्ज है… ये गोलीकांड (Kharsawan Goli Kand) इतना विभत्स था कि इसे आजाद भारत का जालियावाला बाग कांड कहा जाता है…
आजाद भारत का जालियावाला बाग कांड
देश की आजादी के पांच महीने बाद ही एक जनवरी 1948 को ओड़िशा पुलिस ने निर्दोष आदिवासियों को गोलियों से भून डाला…. खरसावां का हाट मैदान खून से लाल हो गया… ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है 50 हजार आदिवासी जमा हुए थे… तभी ओड़िशा मिलिट्री पुलिस ने निर्दोष आदिवासियों पर फायरिंग की.. इसे दिन आजाद भारत का जालियावाला बाग कांड कहा जाता है।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल आजादी मिलने के बाद सरायकेला-खरसावां (Seraikela-Kharsawan) को ओड़िशा अपने साथ मिलाना चाहता था… उसका तर्क था कि सरायकेला-खरसावां में सबसे ज्यादा ओड़िया भाषा-भाषी के लोग रहते हैं, इसीलिए इसे ओड़िशा राज्य में शामिल किया जाना चाहिए… इस बात का समर्थन स्थानीय राजा ने भी किया… अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को खरसवाँ और सराईकेला रियासतों का ऑडिशा में विलय का समझौता हो चुका था…1 जनवरी 1948 को यह समझौता लागू होना था, लेकिन इलाके की आदिवासी जनता ना ही ओड़िशा में शामिल होना चाहते थे ना ही बिहार में… उसी दिन आदिवासी नेता जयपाल सिंह ने खरसावाँ औरा सराईकेला को ऑडिशा में विलय करनें के विरोध में खरसवाँ हाट मैदान पर में जनसभा का आह्वान किया.. उनकी मांग अलग राज्य बनाने की थी… मामला गरमाता गया…. आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा जनसभा में नहीं पहुंच सके… इसी बीच पुलिस और जनसभा में पहुंचे लोगों के बीच विवाद हो गया… फिर क्या था, ओड़िशा पुलिस दनादन गोलियां बरसाने लगी… जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गयी… कहा जाता है कि 10 ट्रकों में शवों को लादकर ले जाया गया और इसे सारंडा के जंगलों में फेंक दिया… इतना ही नहीं आस-पास की कुओं लाशों से पट गया…. इसके बाद खरसावां में शहीदों की याद में स्मारक बनया गया।
खरसावां गोलीकांड क्यों चर्चित है ?
- 1 जनवरी 1948 को खरसावां में चली गोली
- गोलीकांड में सैकड़ों आदिवासियों की गई जान
- ओड़िशा में सरायकेला और खरसावां को शामिल करने का विरोध
- आदिवासी समुदाय के नेता जयपाल सिंह मुंडा ने जनसभा का किया था आह्वान
- 1 जनवरी को खरसावां में जनसभा, ओड़िशा पुलिस ने चलाई गोली
- सैकड़ों आदिवासियों की गई जान
- कई कुएं लाशों से भर गये
- 10 ट्रकों में भरकर शवों को सारंडा के जंगल में फेंका गया
- देशभर में खरसावां गोलीकांड की गूंज
- राम मनोहर लोहिया ने कहा- आजाद भारत का जालियावाला बाग कांड
इसीलिए जहां एक जनवरी को जहां पूरी दुनिया नये साल के जश्न में डूबी होती है वहीं खरसावां गोलीकांड की याद में यहां लोग आंसू बहाते हैं… शहीदों को नमन करते हैं… लोग उसे भूला नहीं पाते… आज खरसावां गोलीकांड संघर्ष का प्रतीक बनकर उभरा है… यह बताता है कि आदिवासी समुदाय अपने हक के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार है।
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