Jatiya Janganana 2025 : भारत में पहली बार स्वतंत्रता के बाद जाति आधारित जनगणना का रास्ता अब लगभग साफ हो गया है। केंद्र सरकार ने आज बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े भी एकत्र किए जाएंगे। केंद्रीय कैबिनेट की बैठक के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी दी।
मंत्री वैष्णव ने बताया कि मोदी सरकार ने यह निर्णय देश के सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखते हुए लिया है। उन्होंने विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि “कांग्रेस ने हमेशा जातिगत मुद्दों को केवल राजनीति के लिए उठाया है। लेकिन हमारी सरकार इसे नीति निर्धारण और सामाजिक न्याय के लिए कर रही है।”
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में जनगणना की शुरुआत वर्ष 1881 में हुई थी। 1931 तक हर जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए और प्रकाशित किए जाते थे। 1941 में भी आंकड़े जुटाए गए, लेकिन उन्हें जारी नहीं किया गया। स्वतंत्र भारत में 1951 से लेकर अब तक केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्गों की जाति आधारित जानकारी दर्ज की जाति रही है। पिछड़े वर्ग (OBC) और अन्य जातियों के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए।
जाति जनगणना की आवश्यकता क्यों?
जाति जनगणना की मांग लंबे समय से की जाति रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि पिछड़े वर्गों (OBC) को मिलने वाला आरक्षण 1931 की जनगणना पर आधारित है, जो अब प्रासंगिक नहीं रह गया है। उनका कहना है कि जब तक सही आंकड़े सामने नहीं आएंगे, तब तक उनके लिए प्रभावी नीतियां नहीं बन सकेंगी।
वर्ष 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया गया था, लेकिन तब भी इसकी गणना 1931 के आंकड़ों के आधार पर ही हुई थी। तब देश में पिछड़ी जातियों की आबादी कुल आबादी का लगभग 52% मानी गई थी।
पक्ष और विपक्ष
जाति जनगणना के समर्थकों का कहना है कि इससे पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों की वास्तविक सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का आंकलन किया जा सकेगा। इससे नीति निर्माण में पारदर्शिता आएगी और संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा। वहीं, विरोध करने वालों का मानना है कि जाति के आधार पर जनगणना कराने से समाज में जातिगत विभाजन और कटुता बढ़ सकती है। इससे सामाजिक एकता को ठेस पहुंच सकती है।
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राजनीतिक संदर्भ
यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब देश के कई राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। विशेष रूप से बिहार जैसे राज्य, जहां जातिगत समीकरण राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं, वहां यह फैसला चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
स्वतंत्र भारत में पहली बार केंद्र सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना का निर्णय ऐतिहासिक और संभावित रूप से सामाजिक संरचना में बदलाव लाने वाला कदम माना जा रहा है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस निर्णय के सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक परिणाम क्या होते हैं।