Jharkhand News: झारखंड में नगर निकाय चुनाव को लेकर एक बार फिर संवैधानिक व्यवस्था की अनदेखी सामने आई है. हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं होने पर न्यायपालिका ने सख्त रुख अपनाया है। झारखंड उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने शुक्रवार को राज्य सरकार की भूमिका पर नाराजगी व्यक्त करते हुए तीखी टिप्पणी की कि “सरकार अदालत के आदेश को दरकिनार कर कानून के शासन का गला घोंट रही है।” कोर्ट ने मुख्य सचिव को भी व्यक्तिगत रूप से तलब किया है.
कोर्ट की टिप्पणी: “संवैधानिक व्यवस्था विफल हो गई है, लोकतंत्र को कुचला जा रहा है”
पूर्व पार्षद रोशनी खलखो की ओर से दायर अवमानना याचिका पर जस्टिस आनंद सेन की अदालत में सुनवाई हुई. कोर्ट ने साफ कहा कि राज्य सरकार ने तीन सप्ताह में चुनाव कराने के आदेश को गंभीरता से नहीं लिया. इतना ही नहीं, सरकार की ओर से प्रथम खंडपीठ में अपील दायर की गयी, जिसे खारिज कर दिया गया. अदालत ने टिप्पणी की, “राज्य में संवैधानिक मशीनरी विफल हो गई है। जब न्यायपालिका के आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है, तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है।
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25 अगस्त को अगली सुनवाई, मुख्य सचिव को उपस्थित होना होगा
कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अब अवमानना की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी. मुख्य सचिव को 25 अगस्त को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देना होगा कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना का आरोप तय किया जाये. यह झारखंड की प्रशासनिक जवाबदेही पर बड़ा सवालिया निशान है.
कोर्ट का आदेश और सरकार का रवैया
4 जनवरी 2024 को हाईकोर्ट ने नगर निगम चुनाव के लिए तीन सप्ताह की समय सीमा तय की थी. सरकार ने पहले ट्रिपल टेस्ट का हवाला दिया, फिर खुद ही कोर्ट को भरोसा दिलाया कि चार महीने में चुनाव करा दिए जाएंगे. इसके बावजूद समय सीमा बीत जाने के बाद भी कोई ठोस प्रक्रिया शुरू नहीं की गयी.
वोटर लिस्ट को बहाना बनाया गया
सुनवाई के दौरान सरकार और राज्य चुनाव आयोग ने दलील दी कि नगर निगम चुनाव के लिए अद्यतन मतदाता सूची केंद्र से नहीं मिली है. इस पर केंद्रीय चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि विधानसभा चुनाव में इस्तेमाल की गई मतदाता सूची ही वैध और अद्यतन है.इसके जरिए निकाय चुनाव भी कराए जा सकेंगे। झारखंड में निकाय चुनाव का मुद्दा सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना से जुड़ा सवाल बन गया है. कोर्ट की सख्ती से पता चलता है कि अब न्यायपालिका आदेशों की अनदेखी पर कोई रियायत देने के मूड में नहीं है. 25 अगस्त को होने वाली सुनवाई इस पूरे मामले में निर्णायक मोड़ ला सकती है.