Maithil New Year 2025 : मिथिलांचल और नेपाल में बड़े धूमधाम से मनाया जाने वाला जुड़ शीतल पर्व (मिथिला नव वर्ष ) मैथिल कैलेंडर के नए साल की शुरुआत है. जानकारी के अनुसार जुड़ शीतल मिथिला क्षेत्र में नव वर्ष के रूप में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें शीतलता की प्राप्ति की कामना की जाती है। यह पर्व दो दिनों तक चलता है, जिसमें पहले दिन सतुआइन और दूसरे दिन धुरखेल मनाया जाता है। इस दौरान जल की पूजा की जाती है और शीतलता की कामना की जाती है।
जुड़ शीतल पर्व का महत्व और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
जुड़ शीतल पर्व के पीछे फसल तंत्र और मौसम भी एक महत्वपूर्ण कारक है। मिथिला में सत्तू और बेसन की नई पैदावार इसी समय होती है, जिसका इस पर्व में बड़ा महत्व है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो सत्तू और बेसन से बने व्यंजन अधिक समय तक बिना खराब हुए रखे जा सकते हैं, जिससे खाना बर्बाद नहीं होता।
जुड़ शीतल पर्व का प्रकृति से संबंध
जुड़ शीतल पर्व का प्रकृति से सीधा संबंध है। इस पर्व के मौके पर बड़े बुजुर्ग अपने से छोटे लोगों के सिर पर बासी पानी डालकर ‘जुड़ैल रहु’ का आशीर्वाद देते हैं। साथ ही मिथिला क्षेत्र में इस दिन संध्या को घर के सभी लोग पेड़-पौधों में जल डालते हैं, जिससे गर्मी के मौसम में भी पेड़-पौधे हरे-भरे रहें और वे सूखें नहीं।
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भारत के विभिन्न राज्यों में जुड़ शीतल पर्व का नाम
जुड़ शीतल पर्व भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। बिहार में इसे जुड़ शीतल या सतुआनी के नाम से जाना जाता है, जबकि उत्तर भारत में सत्तू संक्रांति के नाम से प्रसिद्ध है। पंजाब में इसे वैशाखी, गुजरात में मकर संक्रांति और महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में मेष संक्रांति का विशेष महत्व होता है, जबकि पश्चिम बंगाल में बंगाली नव वर्ष (नोबोबोरशो) मनाया जाता है। सिक्किम में सोनम लोसार या लोसोंग और दक्षिण भारत में कर्नाटक दशहरा के रूप में मनाया जाता है।