Mithila Vikas Board Padyatra : मिथिला विकास बोर्ड को लेकर मिथिलावादी पार्टी का पैदल मार्च बेनीपुर पहुंचा. यात्रा का जगह-जगह जोरदार स्वागत किया गया। इस यात्रा की शुरुआत तरौनी बाबा नागार्जन की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुई. जहां स्थानीय सुभाष झा के नेतृत्व में मिथिलावादी नेताओं का स्वागत किया गया. यह यात्रा शिवराम चौक, लुलहवा चौक, हरिपुर, हाबीभोआर, कंथुडीह, धरौरा चौक, मझौरा चौक, आशापुर चौक, भरत चौक, धेरुख पहुंची. हरिपुर में शहीद कैप्टन दिलीप झा की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया और वहीं से क्रांतिकारी नारे लगाये गये.
आज सभी पदयात्री हाथी पर काली पट्टी बांधकर 25 फरवरी 2019 को बिहार सरकार द्वारा किये गये लाठीचार्ज को काला दिवस के रूप में मना रहे हैं. गौरतलब है कि पद यात्रा के बाद उसी दिन मिथिला विकास बोर्ड की मांग को लेकर एनएच 57 को 06 घंटे तक जाम कर दिया गया था.
पद यात्रा के दौरान सभा को संबोधित करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश भारद्वाज ने कहा कि:
न सुव्यवस्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय या केंद्रीय अस्पताल, न बुनियादी ढांचा, न रोजगार, न भारी उद्योग, न खाद्य-डेयरी-मत्स्य-कृषि आधारित उद्योग, न तकनीकी उद्योग। खेती बंद हो रही है, लोग पलायन कर रहे हैं न कला-संस्कृति-भाषा बढ़ सकी, न पर्यटन. यदि महाराष्ट्र मराठवाड़ा, विदर्भ और गोरखालैंड, हैदराबाद, मिजोरम आदि स्थानों में पिछड़े जिलों के लिए एक स्वायत्त विकास निकाय बना सकता है। तो मिथिला को उसका अधिकार क्यों नहीं दिया जा रहा है? मिथिला के लिए अलग विकास बोर्ड एक ऐसा विचार है, जो मेरे अनुसार मिथिला की वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक-वास्तविक और वैश्विक स्थिति और जरूरतों पर बिल्कुल फिट बैठता है।
हाल ही में राष्ट्रपति ने हैदराबाद-कर्नाटक के 6 पिछड़े जिलों के लिए विकास बोर्ड के गठन को मंजूरी दे दी है। गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन भी इसी प्रकार के कार्य करता है। महाराष्ट्र ने विदर्भ, मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र नामक तीन विकास बोर्डों को भी मंजूरी दी है, जो अपने संबंधित क्षेत्रों की विकास आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वतंत्र रूप से या राज्य के साथ समन्वय में काम करते हैं।
ये विकास बोर्ड आम तौर पर राज्य के गरीब क्षेत्रों या विशिष्ट चिन्हित क्षेत्रों के लिए बनाए जाते हैं ताकि विकास समावेशी हो और उस क्षेत्र की तुलनात्मक भागीदारी हो सके। 6 करोड़, 20 जिले, अलग भाषा और संस्कृति कुल मिलाकर मिथिला को एक अलग विकास परिषद के लिए उपयुक्त बनाती है।मिथिला के जिलों की स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण करें तो स्थिति स्पष्ट हो जायेगी. मिथिला के 20 जिलों की औसत साक्षरता दर केवल 37.5 प्रतिशत है, गरीबी-भुखमरी-कुपोषण-बेरोजगारी-पलायन-उद्योगों और मिलों का बंद होना, शिक्षा-स्वास्थ्य-संचार सुविधाओं का अभाव।
कृषि-यातायात-मानव विकास-निम्न जीवन स्तर, यह सब एक स्वतंत्र बोर्ड या परिषद की आवश्यकता का एहसास कराता है जो केवल मिथिला के विकास पर काम करेगा। यदि केंद्र कोई सहायता या विशेष पैकेज भेजता है तो उसे इस बोर्ड को काम करने के लिए देना चाहिए, न कि राज्य सरकार को इसे कहीं और खर्च करना चाहिए. पार्टी के वरिष्ठ नेता श्री गोपाल चौधरी ने कहा कि : मिथिला विकास बोर्ड की मांगें जरूरी हैं. विकास बोर्ड आमतौर पर राज्य के गरीब क्षेत्रों या विशिष्ट चिन्हित क्षेत्रों के लिए बनाए जाते हैं ताकि विकास समावेशी हो और उस क्षेत्र की तुलनात्मक भागीदारी संभव हो सके। 6 करोड़, 20 जिले, अलग भाषा और संस्कृति कुल मिलाकर मिथिला को एक अलग विकास परिषद के लिए उपयुक्त बनाती है।
मिथिला के जिलों के स्थिति का कम्पेरेटिव विश्लेषण कीजिए तो हालात मुंह खोल के सामने आ जाएगा। करीब सिर्फ 37.5 प्रतिशत एवरेज लिटरेसी रेट है मिथिला के 20 जिलों का, गरीबी-भुखमरी-कुपोषण-बेरोजगारी-पलायन-उद्योग धंधों और मिलों का बन्द होना, शिक्षा-स्वास्थ्य-संचार सुविधाओं की कमी, कृषि-यातायात-मानवविकास-जीवन स्तर का निचले स्तर पर होना । यह सब एक स्वतंत्र बोर्ड या परिषद की आवश्यकता का एहसास कराता है जो केवल मिथिला के विकास पर काम करेगा। यदि केंद्र कोई सहायता या विशेष पैकेज भेजता है तो उसे इस बोर्ड को काम करने के लिए देना चाहिए, न कि राज्य सरकार को इसे कहीं और खर्च करना चाहिए.
इस यात्रा में जिला अध्यक्ष श्री अमित कुमार ठाकुर, राष्ट्रीय महासचिव वीरेंद्र कुमार, आदर्श पाठक, गोपाल झा, कृष्णानंद, संतोष साहू, दीपक डायना, अमित कुमार, गौतम झा, झमेली राम, पांडव, अभिषेक यादव, कृष्णमोहन झा, नीरज क्रांतिकारी, विपीन कुमार, सुमित झा, आदित्य मंडल, राज पासवान सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे.