Mithilawadi Party Padayatra : मिथिलावादी पार्टी (Mithilawadi Party ) के द्वारा 6ठे दिन पद यात्रा मिथिला विकास बोर्ड की मांग को लेकर पहुंचे घनश्यामपुर. यात्रा का नेतृत्व जुगनू मंडल एवं गौतम चौधरी ने किया. आज यह यात्रा असमा, लगमा, गनौन, गलमा, हरद्वार, ब्रह्मपुरा मसवासी, रुंडी, जयदेव पट्टी, तुमौल पहुंची।’मिथिला स्टूडेंट यूनियन’ वर्ष 2018 से लगातार मिथिला विकास बोर्ड की मांग कर रही है। इसे लेकर 05 अगस्त को दिल्ली, 02 अक्टूबर को मिथिला बंद, 02 दिसंबर को राज मैदान में विशाल रैली समेत हर ब्लॉक और जिला मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन किया गया। जिसके बाद हम सभी के आंदोलन के बाद सिद्दीकी जी ने 2019 लोकसभा में इस मांग को घोषणा पत्र में दर्ज कराया था और सांसद गोपाल जी ठाकुर ने भी जीतने के बाद इस मांग को उठाने की बात कही थी, लेकिन सरकार के सौतेले व्यवहार के कारण आज भी यह मांग जनता के बीच नहीं है.
वहीं , मिथिलावादी पार्टी के र जिला उपाध्यक्ष संजय झा ने कहा कि : सेपरेट डेवलपमेंट बोर्ड किसी क्षेत्र विशेष के लिए बनाया गया ऐसा संवैधानिक तंत्र है जो एक राज्य के अंतर्गत आने के बावजूद उस क्षेत्र विशेष के विकास कार्यों से सम्बंधित प्रोजेक्ट्स बना सके और काम कर सके। जैसे की गुजरात-महाराष्ट्र में तीन-तीन सेपरेट डेव्लपमेंट बोर्ड हैं, विदर्भ-मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र, गुजरात में कच्छ-सौराष्ट्र और शेष गुजरात। ये सभी डेवलपमेंट बोर्ड राज्य के प्रशासन में बिना इंटरफेयर किए उस क्षेत्र के विकास से सम्बंधित कार्य करती है। यदि मिथिला में डेवलपमेंट बोर्ड बनता है तो यह क्षेत्र के कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, भाषा-कला-संस्कृति-पर्यटन सम्बंधित प्रोजेक्ट्स, बाढ़-सुखाड़-आपदा सम्बंधित प्रोजेक्ट्स, सोशल रिफॉर्म्स जैसे विषयों पर काम कर सकती है।
‘मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड (MDB)’ क्षेत्र के 20 पिछड़े जिलों की जरूरत और वाज़िब हक़ है। देश के सबसे पिछड़े जिलों की लिस्ट में अररिया, कटिहार, पूर्णिया, बांका, जमुई, बेगुसराय, शिवहर, खगरिया, सुपौल, किशनगंज आदि का नाम सबसे ऊपर आता है। एक आम मैथिल सलाना अन्य जगह के एक औसत भारतीय का एक तिहाई कमाता है, पर कैपिटा इनकम की दृष्टि से एक मैथिल किसी औसत मराठी का चौथाई, गुजराती का पांचवां, दिल्ली का दशवां, केरला का छठवाँ हिस्सा कमाता है। मिथिला क्षेत्र के जिलों का जीडीपी पर कैपिटा नोर्थईस्ट राज्यों के औसत से भी लगभग आधा है।
जिप सदस्य धीरज कुमार झा ने कहा कि : क्षेत्र में न एयरपोर्ट है, न सुव्यवस्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय या केंद्रीय अस्पताल, न इंफ्रास्ट्रक्चर न रोजगार, न हैवी इंडस्ट्री न खाद्य-डेयरी-मत्स्य-कृषि आधारित उद्योग या न ही टेक्निकल इंडस्ट्री। कृषि बन्द हो रही है, लोग पलायन कर रहे हैं, न कला-संस्कृति-भाषा बढ़ पाई और न टूरिज्म। यदि महाराष्ट्र में मराठवाड़ा, विदर्भ और गोरखालैंड, हैदराबाद, मिज़ोरम आदि जैसे जगहों पर पिछड़े जिलों के लिए ऑटोनॉमस डेवलपमेंट बॉडी बन सकता है तो मिथिला को उसका हक़ क्यों नहीं दिया जा रहा है ? सेपरेट डेवलपमेंट बोर्ड फ़ॉर मिथिला एक ऐसा विचार है मेरे हिसाब से जो मिथिला के वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक-वास्तविक और वैकाशिक हालात एवं जरूरत पर एकदम फिट बैठता है। अभी हाल में ही प्रेजिडेंट ने हैदराबाद-कर्नाटक के 6 पिछड़े जिलों के लिए एक डेवलपमेंट बोर्ड के गठन की मंजूरी दी है। गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन भी कुछ ऐसे ही फंक्शन करता है। महाराष्ट्र में भी विदर्भ, मराठावाड़ा और शेष महाराष्ट्र नामित तीन डेवलपमेंट बोर्ड को मंजूरी है जो अपने अपने इलाके के डेवलपमेंट सम्बंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य से स्वतंत्र होके या उसके कॉर्डिनेशन में काम करता है।
ये डेवलपमेंट बोर्ड सामान्यतया राज्य के गरीब इलाक़ों या विशिष्ट पहचान वाले इलाकों के लिए बनाया जाता है ताकि विकास समावेसी हो और उस क्षेत्र की कम्पेरेटिव सहभागिता रह पाए। 6 करोड़, 20 जिला, अलग भाषा-संस्कृति कुल मिलाकर मिथिला को अलग डेवलेपमेंट कॉउंसिल के लिए एकदम उपयुक्त बनाता है। मिथिला के जिलों के स्थिति का कम्पेरेटिव विश्लेषण कीजिए तो हालात मुंह खोल के सामने आ जाएगा। करीब सिर्फ 37.5 प्रतिशत एवरेज लिटरेसी रेट है मिथिला के 20 जिलों का, गरीबी-भुखमरी-कुपोषण-बेरोजगारी-पलायन-उद्योग धंधों और मिलों का बन्द होना, शिक्षा-स्वास्थ्य-संचार सुविधाओं की कमी, कृषि-यातायात-मानवविकास-जीवन स्तर का निचले स्तर पर होना, ये सब जरूरत का एहसास करवाता है एक ऐसे स्वतंत्र बोर्ड या काउंसिल की जो सिर्फ मिथिला के विकास पर काम करे। यदि केंद्र कोई सहायता या विशेष पैकेज भेजता है तो ये इस बोर्ड को मिले काम करने को न की राज्य सरकार उसे कहीं और खर्च कर दे।
पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपाल चौधरी ने कहा कि : मिथिला विकास बोर्ड की मांग परमावश्यक हैं।
डेवलपमेंट बोर्ड सामान्यतया राज्य के गरीब इलाक़ों या विशिष्ट पहचान वाले इलाकों के लिए बनाया जाता है ताकि विकास समावेसी हो और उस क्षेत्र की कम्पेरेटिव सहभागिता रह पाए। 6 करोड़, 20 जिला, अलग भाषा-संस्कृति कुल मिलाकर मिथिला को अलग डेवलेपमेंट कॉउंसिल के लिए एकदम उपयुक्त बनाता है। मिथिला के जिलों के स्थिति का कम्पेरेटिव विश्लेषण कीजिए तो हालात मुंह खोल के सामने आ जाएगा। करीब सिर्फ 37.5 प्रतिशत एवरेज लिटरेसी रेट है मिथिला के 20 जिलों का, गरीबी-भुखमरी-कुपोषण-बेरोजगारी-पलायन-उद्योग धंधों और मिलों का बन्द होना, शिक्षा-स्वास्थ्य-संचार सुविधाओं की कमी, कृषि-यातायात-मानवविकास-जीवन स्तर का निचले स्तर पर होना, ये सब जरूरत का एहसास करवाता है एक ऐसे स्वतंत्र बोर्ड या काउंसिल की जो सिर्फ मिथिला के विकास पर काम करे। यदि केंद्र कोई सहायता या विशेष पैकेज भेजता है तो ये इस बोर्ड को मिले काम करने को न की राज्य सरकार उसे कहीं और खर्च कर दे।
इस यात्रा में जिलाध्यक्ष श्री अमित कुमार ठाकुर , राष्ट्रीय महासचिव वीरेंद्र कुमार , नवीन सहनी , अभिषेक यादव , चंदन यादव , दीपक डायना , संतोष साहू , नीतीश यादव , रौशना मंडल समेत सकैडो लोग उपस्थित थे ।