Kurmi Protest Jharkhand: 20 सितंबर से अनिश्चितकालीन ‘रेल टेका डोहोर छेका’ आंदोलन शुरू हो गया है. यह आह्वान कुड़मी समाज ने किया है. समाज कुड़मियों को एसटी सूची में शामिल करने की मांग कर रहा है. इस आंदोलन का असर दिखने लगा है. आदिवासी कुड़मी समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने की मांग को लेकर शनिवार सुबह झारखंड के कुछ जिलों में रेलवे स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक पर समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. समाज के नेता ढोल-नगाड़े के साथ रेलवे ट्रैक पर बैठ गये हैं.
झारखंड में कुड़मी या कुरमी कौन है?
क्या उनका संबंध मराठा साम्राज्य के शासकों से था या वे बिहार के कुर्मियों के वंशज हैं? कुछ दावे यह भी कहते हैं कि कुड़मी पाषाण युग से ही झारखंड में रह रहे हैं। आज कुड़मी समाज ओबीसी का हिस्सा है, लेकिन वे लगातार आंदोलन कर रहे हैं कि हम आदिवासी हैं और हमें एसटी वर्ग में शामिल किया जाये. क्या कुड़मियों का आदिवासी होने का दावा सच है या वे उस जाति समूह का हिस्सा हैं? कोई जनजाति कब जाति बनने की ओर अग्रसर होती है? कुड़मियों ने अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई और आदिवासियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चले.
कुड़मी आदिवासी नहीं हैं – निशा भगत
आदिवासी नेताओं का कहना है कि कुड़मी समुदाय अपने निजी फायदे के लिए एसटी समुदाय में शामिल होना चाहता है. केंद्रीय सरना समिति, महिला मोर्चा की अध्यक्ष निशा भगत का दावा है कि कुड़मी आदिवासी नहीं हैं. उनकी संस्कृति और आचरण आदिवासियों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता है. ये एक ऐसी जाति है जो खुद को आदिवासियों से ऊपर मानती है, लेकिन आज ये आदिवासियों के साथ आना चाहते हैं, इसके पीछे सिर्फ यही वजह है कि ये सरकारी सुविधाओं का लाभ लेना चाहते हैं. वहीं गुंजल इकिर मुंडा का कहना है कि कुड़मी समुदाय को पहले यह तय करना चाहिए कि वे क्या चाहते हैं? कई बार उनके बयानों में विरोधाभास नजर आता है.
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कुड़मी समुदाय अक्सर अपनी पहचान को लेकर संघर्ष करता नजर आता है, यह स्थिति बदलनी चाहिए. जहां तक आदिवासियों के विरोध का सवाल है इसलिए शायद उन्हें लगता है कि अगर कुड़मियों को एसटी सूची में शामिल किया गया तो उनकी ज़मीन, जो आदिवासियों की सबसे बड़ी संपत्ति है, पर ख़तरा हो सकता है.