Darbhanga: ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा में 8 से 13 अप्रैल, 2025 तक आयोजित पोषण पखवाड़ा के अंतर्गत विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग में “पोषण एवं मोटापा-प्रबंधन तथा शिशु जन्म के शुरुआती 1000 दिनों का महत्व” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का संयोजन पीजी एनएसएस इकाई, गृह विज्ञान विभाग तथा डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के एनएसएस समन्वयक डॉ. आर.एन. चौरसिया ने की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने कहा कि उचित पोषण न केवल बच्चों और किशोरों के शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी सुदृढ़ करता है। उन्होंने संतुलित आहार, शारीरिक सक्रियता और जंक फूड से दूरी बनाए रखने पर बल दिया।
मुख्य वक्ता डॉ. प्राची मारवाहा ने शिशु के जीवन के पहले 1000 दिनों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह समयावधि शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास की नींव होती है। उन्होंने शिशु को जन्म के पहले घंटे में कोलेस्ट्रम (मां का पहला दूध) देने की अनिवार्यता पर जोर देते हुए छह माह तक केवल स्तनपान की सिफारिश की।
डॉ. प्रगति, जो इस विषय की प्रवक्ता रहीं, ने मोटापे को जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का मुख्य कारण बताते हुए संतुलित आहार और नियमित व्यायाम को आवश्यक बताया। उन्होंने बताया कि पोषण की आदतों में फल, सब्जी, दाल, और पर्याप्त पानी की मात्रा को प्राथमिकता देनी चाहिए, साथ ही योग, ध्यान और तनाव प्रबंधन भी उतना ही जरूरी है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. सोनू राम शंकर ने किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में मानसिक तनाव को दूर करने, स्वास्थ्यप्रद जीवनशैली अपनाने और नियमित शारीरिक श्रम को अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयासों से न केवल मोटापा कम किया जा सकता है, बल्कि समग्र स्वास्थ्य में भी सुधार आता है।
कार्यक्रम में डॉ. उषा झा, शोधार्थी एवं जेआरएफ रंभा कुमारी और रिचा कुमारी, तथा अन्य प्रतिभागियों – प्रेरणा प्रगति, डिंपल कुमारी, समरेश कुमार, और विवेक भारती ने भी अपने विचार साझा किए।