Mithila Pag : नेपाल की मैथिली महिलाओं द्वारा उत्पन्न मिथिला कला का इतिहास 7वीं शताब्दी तक पहुंचता है और यह एक पारंपरिक कला के रूप में आज भी जीवित है। इस कला को भारत में मधुबनी पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है, जो नेपाल और भारत के मिथिला क्षेत्र के विभिन्न समुदायों की महिलाओं द्वारा बनाई जाती है। जनकपुर, जो कभी मिथिला साम्राज्य की राजधानी थी, इस कला के संरक्षण और प्रसार का महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है।
शुरुआत में, ग्रामीण महिलाएं अपने विचारों, आस्थाओं और सपनों को व्यक्त करने के लिए उंगलियों, टहनियों, ब्रश और माचिस की तीलियों से अपने घरों की दीवारों पर पेंटिंग बनाती थीं। समय के साथ, यह कला विशेष आयोजनों जैसे कि शादी और त्योहारों का हिस्सा बन गई। धीरे-धीरे मिथिला पेंटिंग ने अपनी पारंपरिक सीमाओं को पार किया और कागज तथा कैनवास पर विकसित हो कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।
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मिथिला पाग का इतिहास और महत्व
पाग की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जब इसे पौधों की पत्तियों से बनाया जाता था। आज भी यह संशोधित रूप में प्रचलित है और मिथिला में इसे गर्व का प्रतीक माना जाता है। Paag के रंग का भी गहरा महत्व है। लाल पाग दूल्हे और जनेऊ की रस्म अदा करने वाले लोग पहनते हैं, जबकि सरसों के रंग का पाग शादी समारोहों में शामिल होने वाले लोग पहनते हैं। बुजुर्गों के लिए सफेद पाग पहनने की परंपरा है।
मिथिला में Paag एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में माना जाता है और यह कपास, साटन और रेशम से तैयार किया जाता है। आजकल यह विभिन्न अवसरों पर पहना जाता है और यह मिथिला की पहचान का एक अहम हिस्सा बन चुका है।
मिथिला पाग को बढ़ावा देने का अभियान
2016 में मिथिला सांस्कृतिक दबाव समूह ‘मिथिलालोक’ ने पाग के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक अभियान शुरू किया था। इस अभियान के तहत, मिथिलालोक ने बिहार विधान परिषद में पाग को एक प्रतीकात्मक सिर वस्त्र के रूप में पहचान दिलाने के लिए प्रस्ताव रखा और इसे बिहार राज्य का आधिकारिक सिर वस्त्र बनाने की मांग की।
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