Shibu Soren: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का आज निधन हो गया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए उनके निधन की जानकारी दी. और उन्हें ‘दिशोम गुरु’ यानी ‘आदिवासियों का गुरु’ कहकर भावभीनी श्रद्धांजलि दी.
शिबू सोरेन शाकाहारी क्यों बन गए थे?
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को संथाल परगना के निमिया गांव (दुमका) में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई। 1953 में दशहरे की सुबह, जब वह सिर्फ 9 साल के थे, उनके पिता सोबरन मांझी ने गलती से एक पालतू पक्षी (भेंगराज) को मार डाला। इस घटना ने शिबू के कोमल मन को अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने उस पक्षी का अंतिम संस्कार किया, बांस की खाट बनाई और कफन की व्यवस्था की।यहीं से उन्होंने मांस और मछली छोड़ दी और जीवन भर शाकाहारी बन गये। इसी क्षण ने उनके भीतर अहिंसा और करुणा के बीज बोये, जिसने बाद में उन्हें ‘दिशोम गुरु’ बना दिया।
शिबू सोरेन ने पढ़ाई क्यों छोड़ दिया ?
1957 में जब शिबू महज 13 साल के थे, तब उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या कर दी गयी थी. वह एक शिक्षक थे और साहूकार प्रथा का विरोध कर रहे थे। इस घटना ने शिबू को सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़ा कर दिया. पढ़ाई छोड़कर उन्होंने हज़ारीबाग में फॉरवर्ड ब्लॉक नेता लाल केदार नाथ सिन्हा के संरक्षण में राजनीतिक प्रशिक्षण लिया। यहीं से उनके जीवन का असली संघर्ष शुरू हुआ।
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संगठित तरीके से आदिवासियों की आवाज बनने के लिए शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का गठन किया. इसके जरिए उन्होंने अलग झारखंड राज्य की मांग को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया. उनका कद इतना बड़ा हो गया कि लोग उन्हें ‘गुरु जी’ कहने लगे।