Devendra Nath Mahato: 76वें गणतंत्र दिवस के पूर्व संध्या पर जेएलकेएम केंद्रीय वरीय उपाध्यक्ष देवेन्द्र नाथ महतो ने राजधानी रांची मोराबादी मैदान में झारखंड के वर्तमान परिस्थिति पर सामूहिक प्रेस वार्ता किया। वही प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि भारत का राष्ट्रीय पर्व 26 जनवरी गणतंत्र दिवस हमें एहसास दिलाता है कि हम सभी एक लोकतांत्रिक, गणतांत्रिक, संप्रभुत्व संपन्न गणराज्य में रहते हैं।
गणतांत्रिक होने का तात्पर्य है कि सरकार के सभी कार्यों और योजनाओं का हर स्तर पर लागू और समीक्षा करने के लिए गठन किए गए सभी बोर्ड, निगम, परिषद और संवैधानिक आयोग का आम जनता के हित में सुचारु रूप से संचालन किया जाना चाहिए। लेकिन झारखंड में दर्जन भर से अधिक बोर्ड, निगम, परिषद, आयोग (प्राधिकार) ऐसे हैं जिनका दफ्तर तो है लेकिन उसमें बैठने वाला कोई नहीं है, विभागीय सभी कार्य शिथिल पड़े हुए हैं।
अलग झारखंड के 24 साल बाद और गणतंत्र हुए 75 साल बाद झारखंड के वर्तमान परिस्थिति पर मूल्यांकन करते हैं तो हम पाते हैं कि इतने लंबे समय बीतने के बाद भी स्थानीय निति, नियोजन निति, नियमित नियुक्ति परीक्षा नियमावली इत्यादि नीति नहीं बन पाई है। आज भी पीड़ित छात्र, किसान, मजदूर, गरीब को न्याय नहीं मिल रहा है। जेपीएससी अध्यक्ष पद पिछले पांच महीना से रिक्त पड़ा है जिससे 11वीं सिविल सेवा परीक्षा, फॉरेस्ट रेंजर ऑफिसर, सीडीपीओ जैसे अन्य परीक्षाफल नई विज्ञापन में बाधित हो रही है, युवा भविष्य का योजना नहीं बना पा रहें हैं।
राज्य सूचना आयोग, महिला आयोग, मानव अधिकार आयोग, झारखंड राज्य बाल श्रमिक आयोग जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था की अध्यक्ष पद रिक्त होने के कारण निष्क्रिय है जिससे राज्य के पीड़ित लोगों को न्याय नहीं मिल पा रही है ।
वही आज भी झारखंड के मजदूर छात्र किसान न्याय के लिए दर दर भटक रहें हैं । इसके अलावा मुख्य रूप से झारखंड राज्य वन विकास निगम, झारखंड राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड, झारखंड पर्यटन विकास निगम, मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड, झारखंड माटी कला बोर्ड, समाज कल्याण बोर्ड, झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद , झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग झारखंड राज्य निगरानी पार्षद, झारखंड राज्य विकास परिषद, झारखंड औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार, झारखंड राज्य कृषि विपणन परिषद ऐसे अन्य हैं जिनके दफ्तर तो है लेकिन उसमें बैठने वाले कोई नहीं है कार्य शिथिल पड़े हुए हैं । तो आखिर हम कैसे रिपब्लिक होने का एहसास करें? मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।